श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि मानव जीवन के समस्त पहलुओं को समाहित करने वाला दिव्य ग्रंथ है। यह भगवान श्रीकृष्ण द्वारा महाभारत के युद्धभूमि में अर्जुन को दिए गए उपदेशों का संकलन है, जो न केवल अर्जुन के लिए, बल्कि समस्त मानव जाति के लिए जीवन का मार्गदर्शन करने वाला है।
ईश्वर का दिव्य ज्ञान – गीता भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकला हुआ दिव्य ज्ञान है, जिसे स्वयं भगवान ने अर्जुन को सुनाया और संजय ने धृतराष्ट्र को।
कर्मयोग का संदेश – गीता हमें निष्काम कर्मयोग की शिक्षा देती है, अर्थात फल की चिंता किए बिना कर्तव्य करते रहना ही सच्चा धर्म है।
भक्तियोग का महत्व – गीता में भगवान ने बताया है कि जो व्यक्ति भक्ति, श्रद्धा और प्रेम से उनकी शरण में आता है, वह सभी कष्टों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।
ज्ञानयोग और ध्यानयोग – गीता आत्मा, परमात्मा, माया, संसार, और मोक्ष के रहस्यों को उजागर करती है। यह आत्मा के अमरत्व और परम सत्य की अनुभूति कराती है।
सर्वधर्म समभाव – गीता सभी धर्मों की आत्मा है। यह न किसी एक मत का प्रचार करती है, न ही किसी एक विचारधारा का समर्थन, बल्कि यह संपूर्ण मानवता के कल्याण का मार्ग दिखाती है।
शांति और मोक्ष का मार्ग – जो व्यक्ति श्रद्धा और निष्ठा से गीता का अध्ययन करता है, वह जीवन की समस्याओं से मुक्त होकर आत्मिक शांति और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
गीता पढ़ने और सुनने के लाभ
गीता के पाठ से मानसिक शांति प्राप्त होती है।
यह व्यक्ति को जीवन में सही निर्णय लेने की शक्ति देती है।
मृत्यु के भय को समाप्त कर आत्मा के अमरत्व का बोध कराती है।
यह हमें मोह, माया और अज्ञान से मुक्त कर सत्य की राह पर ले जाती है।
यह व्यक्ति को धर्म, कर्म और मोक्ष के गूढ़ रहस्यों को समझने में मदद करती है।
भगवान श्रीकृष्ण का वचन (गीता महात्म्य में उद्धृत श्लोक)
“गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता॥”
अर्थ: यदि गीता का सही अर्थ और भावार्थ समझ लिया जाए, तो अन्य शास्त्रों को पढ़ने की आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि यह स्वयं भगवान विष्णु के मुखकमल से निकली हुई है
श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की सर्वोत्तम कला है