Maa Vindhyawasini Ki Kripa HarshShukla@ Mo.8090363940
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*श्री श्री विन्ध्यवासिनीदेवी*---
परम रम्य सुशोभित दिव्य *श्रीश्रीविन्ध्यवासिनी*
देवी चण्डिका ने कहा वैवस्वत-मन्वन्तर में २८ वें युग में शुम्भ व निशुम्भ नामक दो महा-असुर उत्पन्न होगे
वैवस्वतेऽन्तरे प्राप्ते
अष्टाविंशतिमे युगे।
शुम्भो निशुम्भश्चैवान्
यावुत्पत्स्येते महाऽसुरौ।। *दु०सप्तशती ११/४१*।। )
वैवस्वतमनु के अधिकारकाल में अर्थात् द्वापर व कलि के सन्धिकाल में *भगवती * ने प्रकट होकर शुम्भ व निशुम्भ नामक अन्य दो महाअसुरों का वध किया हैं। *श्रीकृष्ण* भी इसी २८वे युग में ही प्रकट हुए हैं।
*देवी चण्डिका कहती हैं कि उस समय नन्दगोप के घर में यशोदा के गर्भ से उत्पन्न होकर विन्ध्याचलवासिनी रूप में मैं उन दोनों शुम्भ निशुम्भ का नाश करूंगी* -
नन्दगोपगृहे जाता
यशोदागर्भसम्भवा ।
ततस्तौ नाशयिष्यामि
विन्ध्याचलनिवासिनी।।दु०सप्त० ११/४२।।)
एषा महालक्ष्म्यंशभूता
अर्थात् *विन्ध्येश्वरी देवी महालक्ष्मी की अंशभूता* हैं।
सप्तशतीमूर्तिरहस्य मैं इनका स्वरूप वर्णित हैं । *देवी चतुर्भुजा हैं। पद्म,अंकुश,पाश व शङ्ख लिए हैं। स्वर्णपद्म पर बैठी हैं।*- कनकोत्तमकान्ति: सा
सुकान्तिकनकाम्बरा। देवीकनकवर्णाभा
कनकेत्तमभूषणा। कमलांकुशपाशाब्जै
रलंकृत चतुर्भबुजा।
इन्दिरा कमला लक्ष्मीः
सा श्रीरुक्माम्बुजासना।।२-३))
द्वापर व कलि के सन्धिकाल में जब नारायण देवकी-पुत्र *श्रीकृष्ण* के रूप में आविर्भूत हुए , तभी *भगवती योगमाया ने नन्द. के घर में यशोदा की कन्या के रूप में जन्म लिया।*
श्रीमद्भागवत १०/२/९-१२ में उल्लेख हैं
अथाहमंशभागेन
देवक्या: पुत्रतां शुभे ।
प्राप्स्यामि त्वं यशोदायाः
नन्दपत्न्यां भविष्यसि।।
दिव्यस्रगम्बरालेप
रत्नाभरणभूषिता।
धनु:शूलेषु चर्मासि
शङ्खचक्रगदाधरा।।
महाभारत विराटपर्व ६/३४ में युधिष्ठिरकृत "दुर्गास्तोत्र" में भी भगवती विन्ध्येश्वरी का उल्लेख हैं
यशोदा गर्भसम्भूतां नारायणवरप्रियाम्।
नन्दगोपकुले जातां
मङ्गल्यां कुलवर्द्धिनीम्।
तत्त्त्वप्रकाशिका
विन्ध्याचले तत्रापि
गङ्गातीरे निवासिनी।
गुप्तवतीटीका
युधिष्ठिर कृत दुर्गास्तोत्र में कहा हैं
विन्ध्ये चैव नगश्रेष्ठे
तव स्थानं च शाश्वतम्।
महाभारत विराट्पर्व ६/१७ )"।
पद्म
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