मीरा रामकृष्णन और आर्चिश मते माधवन, जो कि पहले सहकर्मी रह चुके थे और आर्चिश की कज़िन वर्षिता संपथ, ऐसी पारंपरिक प्रथाओं को फिर से जीवित करना चाहते थे जिनसे स्वास्थ्य और पर्यावरण, दोनों को फ़ायदा पहुँचता है.
मीरा कहती हैं, “मैं तमिल परिवार में पली-बढ़ी हूँ और मुझे घर में बना रसम बहुत ही स्वादिष्ट लगता था. बाद में मुझे पता चला कि स्वाद का असली कारण ईया चोम्बू था, ईया चोम्बू हाथ से बना टिन का बर्तन होता है जिसमें रसम बनाया जाता है. इससे स्वाद भी बढ़ता था और खून के बहाव को भी बढ़ाता था.”
इन तीनों ने मिलकर Zishta की शुरुआत की. Zishta ने 2016 में ईया चोम्बू को अपने पहले प्रोडक्ट के रूप में लॉन्च किया. इसके साथ डोसा बनाने का पारंपरिक लोहे का तवा, सेंगोट्टई डोसा कल्लु और भारतीय रसेदार सब्ज़ियाँ बनाने का सोपस्टोन का बर्तन कल चट्टी भी इन्होंने लॉन्च किया.
आज Zishta पूरे देश के 18 शिल्पकारों के साथ काम कर रहा है जो हाथ से पारंपरिक प्रोडक्ट बनाते हैं. इसमें कड्डलूर के कुम्हार, सलेम के सोपस्टोन के कारीगर, ओडिशा के कांसा कारीगर, कच्छ के रेहा चाकू निर्माता, महाराष्ट्र के पीतल तांबत कारीगर, पश्चिम बंगाल के नीम की लकड़ी के बढ़ई, केरल के उरुली और वेंगलम निर्माता शामिल हैं.
लेकिन चूँकि ये प्रोडक्ट काफ़ी लंबे समय से भारतीय घरों में इस्तेमाल नहीं हुए हैं, लोगों के मन में इनके बारे में गलतफहमी है और साथ ही जागरूकता की भी कमी है. यहाँ पर WhatsApp ने मदद की.
आर्चिश कहते हैं, “हम ग्राहकों के वीडियो शेयर करते हैं जिसमें दिखाया जाता है कि वे प्रोडक्ट का इस्तेमाल कैसे करते हैं. हम प्रोडक्ट बनाते हुए कारीगरों के वीडियो और फ़ोटो भी शेयर करते हैं. प्रोडक्ट कैसे बनते हैं, उनका इस्तेमाल कैसे करना है, स्वास्थ्य लाभ और प्रचलित गलतफहमियों के बारे में भी हम जानकारी शेयर करते हैं.” “कई नए ग्राहक हमसे WhatsApp पर संपर्क करते हैं. चूँकि हम प्लैटफ़ॉर्म पर उनके सवालों के तुरंत जवाब दे सकते हैं, इसलिए उनमें से अधिकतर सामान खरीद लेते हैं.”
Zishta की सफलता बेहतरीन उदाहरण है कि आधुनिक तकनीक कैसे पुरानी परम्पराओं को फिर से जीवित करने का काम कर रही है.